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बलिदान दिवस 18 सितम्बर 2021 पिता-पुत्र का आज बलिदान दिवस हैं।

हेल्लो दोस्तों 
                  मेरे इस ब्लाॅग पर आप लोंगो का  बहुत-बहुत स्वागत हैं। दोस्तों ये कहानीं एक पिता-पुत्र की हैं। 

दोस्तों ये हमारे वो पुर्वज हैं जिनके बलिदान के फल स्वरूप आज हमारा अस्तित्व हैं। ये ऐसे वीर हैं जिन्होंने अपने रक्त से इस मिट्टी को आत्मसात् करते हुए, अमरता को प्राप्त किया हैं। ऐसे वीरों की गौरवगाथा हैं। उन कई वीर और अमर बलिदानियों में से एक पिता-पुत्र का आज बलिदान दिवस हैं। 

आप लोग जानते होगें कि 1857 में जब जबलपुर में तैनात अंग्रेजो की 52 वी रेजिमेंट का फौजी क्लार्क बहुत क्रूर था। वह छोटे राजाओं तथा जनता को परेशान करता था। यह देख कर गोंडवाना जबलपुर के राजा शंकरशाह ने उनके आत्याचारों का विरोध करने का प्रण ले लिया। शंकरशाह और उनके पुत्र दोनों एक अच्छा कवि भी थें। फिर दोनों ने कविता के माध्यम से पुरे राज्य में विद्रोह का आग सुलगा दिया। राजा 👑 ने एक भ्रष्ट कर्मचारी को निष्कासित किया था वह फौजी क्लार्क को अंग्रेजी में बताता था। फिर फौजी क्लार्क समझ गया कि राजा किसी विशाल योजना में हैं, फिर क्लार्क ने राजा के हर तरफ गुप्तचरों को तैनात कर दिया था।  


कुछ गुप्तचरो ने साधु वेश में महल जाकर सारे भेद सुन कर आ गये।फिर उन्होंने क्लार्क को बता दिया फिर दो दिन बाद क्लार्क ने आक्रमण ही सबसे बलिदान दिवस 18 सितम्बर 2021 पिता-पुत्र का आज बलिदान दिवस हैं। अच्छी सुरक्षा बलों के साथ 14 सितम्बर को राजमहल को घेर लिया। राजा की तैयारी अधूरी थी। बिना किसी विशेष संघर्ष के राजा शंकरशाह और उनके 32 वर्षीय पुत्र रघुनाथ शाह बन्दी बना लिया गया। क्लार्क ने उन्हें सार्वजनिक रूप से मृत्युदण्ड देकर जनता में आतंक फैलाने का का सोचा। अतः 18 सितम्बर1858 को दोनों को अलग-अलग तोप के मुँह पर बाँध दिया गया। 


फिर मृत्यु से पूर्व उन्होंने अपनी प्रजा को एक-एक कविता सुनाने लगे, पहला छन्द राजा ने सुनाया ,कविता पूरी होते ही जनता में राजा एवं राजकुमार की जय के नारे गूँज उठे। क्लार्क को लगा। कि कहीं विद्रोह यहाँ पर ही न फूट जाये। तोप को तैयार रखें थे। संकेत मिलते ही मशाल लगाकर तोपें पें दाग दी गयीं। भीषण गर्जना के साथ चारों ओर धुआँ भर गया। महाराजा शंकर शाह और राजकुमार रघुनाथ शाह की हड्डियों और माँस कि चीथड़े उड़ गये आकाश में पुरा भर सा गया।जहाँ इन दोनों वीर बलिदान हुए, वहाँ पर आज भी दोनों तोपें खड़ी उनके साहस की गाथा गा रही हैं। उन गौरव गाथाओं के अमर बलिदानियों को हम आज याद करते हैं।नमन करते हैंऔर उनकी गौरव गाथाओ को समय समय पर जनता के आगे लाते रहेगें यह हमारा संकल्प है

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