आदिवासी सौरमंडल का महातारा-: डा. भंवर सिंह पोर्ते
आदिवासियों के मसीहा डा. पोर्ते -: ग्राम बदरोड़ी (मरवाही) जिला गौरेला पेण्ड्रा में 01 सितम्बर 1943 को जन्मे एक बालक ने अविभाजित मध्यप्रदेश की राजनीति और आदिवासी सामाजिकी में वह चमत्कार कर दिखाया, जिसकी मिशाल आज भी नहीं मिलती । भारत के सबसे बड़े आदिवासी बाहूल्य राज्य मध्यप्रदेश में आदिवासी सत्ता का सपना देखने व उसे क्रियान्वयन की दिशा में ले जाने वाले उस प्रथम महायोद्धा का नाम डा.भंवर सिंह पोर्ते है। साल 1980 का वह दौर जब आदिवासी समाज जंगलों, बिहड़ो व पहाड़ियों की बियाबान पगडंडियों से पढ़ लिख कर तेजी से बाहर निकल रहा था, उस समय जातियों उपजातियों व क्षेत्रीयता की दिवारों को तोड़ कर एक शक्तिशाली संगठित समाज बनाने का बीड़ा डा. पोर्ते साहब ने उठा लिया।यह वह समय था जब मध्यप्रदेश में जातीय संगठन हुआ करते थे जैसे गोंडवाना सेवा मंडल समिति ,संघ समाज आदि ,भील सेवा मंडल, उरांव कल्याण विकास समिति, कोल विकास समिति ,परधान संघ , भिलाला विकास समिति आदि इत्यादि, इस प्रकार सभी जातियों में अपने नियम कायदे व संगठन हुआ करते थे। और आपस में भाईचारा तो था लेकिन एकता नहीं थी ।

आदिवासी सत्ता -: आदिवासी सत्ता और आदिवासी मुख्यमंत्री* के प्रथम स्वप्नद्रष्टा डा.भंवर सिंह पोर्ते साहब थे और उनके इस सपने ने ही उनकी *राजनैतिक हत्या** कर दी ।आदिवासी सत्ता संघर्ष की कहानी लम्बी व इतनी अधिक दर्दनाक दास्ताँ है जिसे अभी लिखा नहीं गया है। मैं स्वयं को शौभाग्यशाली मानता हूँ कि मुझे मेरे परम् पूज्य स्वरूप सिंह पोर्ते साहब, माननीय डा.पोर्ते साहब व माननीय दिलीप सिंह भूरिया साहब जैसी महान आत्माओं के सानिध्य व मार्गदर्शन में काम सीखने व करने का अवसर मिला।इसी आशीर्वाद का परिणाम है कि मैं आज भी मन, वचन और कर्म से, पवित्र भावना से, अपने तन मन धन से इन महापुरुषों के सपनों को साकार व आकार देने में संकल्पित, समर्पित और निरंतर सक्रिय हूँ। डा. पोर्ते साहब *सामाजिक क्रांति* के लिए *वैचारिक क्रांति* को सबसे बड़ा औजार मानते थे । उनका स्पष्ट मानना था कि विचार क्रांति के बिना आदिवासी समाज में *राजनैतिक क्रांति* स्थाई रूप से कभी नहीं आ सकती । पोर्ते साहब आदिवासी समाज में अजागरूकता, जातियता, उपजातिवाद, क्षेत्रियवाद और अवैज्ञानिक सोंच को समाप्त करने के लिए अखबार , पत्र पत्रिकाओं को *बन्दूक व तोप* कहते थे । उन्होंने अखबार व पत्रिका प्रकाशन के लिए जीवन भर प्रयास किया । भोपाल में जमीन खरीदी, प्रिंटिंग मशीनें लगवाई और समाज के विद्वान लेखकों, साहित्यकारों व बुद्धीजिवीयों को खोजा, उन्हें तैयार किया लेकिन दूर्भाग्य ही कह सकते हैं कि लाख कोशिशों के बाद भी उनका यह सपना अधूरा रह गया । इंजीनियर कार्तिक उरांव साहब और डा. भंवर सिंह पोर्ते साहब के इन्ही सपनों को मूर्त रूप देने का मैने फैसला लिया और तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए *आदिवासी सत्ता* नाम से मासिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ किया । जिस समाज में पढ़ने का जुनून है और न ही लिखने का शुरूर है, वहाँ 2007 से हम चीख चीख कर कह रहे हैं कि *पढ़ोगे तो जानोगे और जानोगे तो मानोगे। हमारे महापुरुषों का आशिष व प्रताप है कि मैं और मेरी तरह सोंच रखने वाले अनेकानेक साथीगण आदिवासी सत्ता की विचार क्रांति को बन्दूक से तोप और तोप से मिसाइल बनाने में लगे हुए हैं ।आदिवासी समाज की आदिवासी सत्ता को स्थापित करने की महाभारत में डा. पोर्ते साहब शहीद हो गये ।इसी प्रकार दबंगों के दबंग दिलिप सिंह भूरिया साहब शहीद हो गये। गोंडवाना की अलख जगाते जगाते दादा हीरा सिंह मरकाम भी शहीद हो गये । हमारे समाज के पास न तो धन की कमी है और न ही जन का अकाल है, कमी है तो विश्वास की ।कमी है सही सोंच की, सही नजरिये की ।आज जरूरत है धन के सदुपयोग की और जबतक हम सदुपयोग की परिभाषा को नहीं समझेंगे तब तक *मावा नाटे मावा राज* के हमारे पूर्वजों का सपना साकार नहीं कर सकते । ध्यानाकर्षण-: आदिवासी भाग्य विधाता माननीय जयपाल सिंह मुण्डा साहब, विचार क्रांति के प्रणेता माननीय इंजीनियर कार्तिक उरांव साहब, विचार क्रांति के योद्धा व मसीहा माननीय डा. भंवर सिंह पोर्ते साहब, सामाजिक क्रांति के जननायक माननीय दिलीप सिंह भूरिया साहब, गोंडवाना राज्य के महानायक राजा लालश्याम शाह साहब एवं गोंडवाना के अलख निरंजन दादा हीरा सिंह मरकाम जैसी विभूतियों का समग्र क्रांतिकारी जीवन लिखित साहित्य के रूप में आना अभी शेष है । आना चाहिए या नहीं यह देश का आदिवासी समाज तय करें। जय सेवा
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धन्यवाद प्राकृतिक जोहार
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