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पाहांदी पारी कुपार लिंगों का जन्म कब और कैसे हुआ है?

 सेवा जोहार

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प्राचीन समय में यानी शंभू युग में गण्डोद्वीप गोंडवाना भू-भाग में पांच भू-खण्ड चार संभाग थे। 

जहां कोयावंशियों के चार वंश भिड़ी का साम्राज्य हुआ करता था । उमोगुट्टाकोर संभाग में पुरारवंश - सूर्य वंश में चक्रवर्ती सम्राट पुर्राशीपोय के युवा पुत्र कुंवर पुलसीव राज्य का उत्तराधिकारी हुआ इनकी पत्नी राजमाता देवी हिरवा जी हुई विवाह के बहुत समय हो गया पर सन्तान उत्पत्ति नहीं हुई दोनों राजा रानी फड़ापेन की नियमित आराधना करते थे। एक समय रविवार के दिन को प्रात काल भुन्सारे पहर पर नदी में स्नान करने नित्य जाया करती थीं। स्नान उपरांत सूर्य देव को जलार्ध किया तत्पश्चात सजोरपेन की पूजा हेतु जल भरने लगी तभी जलधारा में बहते पांच कोयापुंगार

- महुआ फूल एक कतार में बहते दिखाई दिये कोयापुंगारों को पात्र में रखकर राजभवन चली गई, और सजोरपेन की आराधना नित्य नियम से करते हुए उन्हें दिव्य स्वप्न दिखाई दिया जिसमें वह महान जीवात्मा की उत्पत्ति हेतु संदेश था जो कोयवंशियों के सत्मार्ग प्रशस्त करने वाले का अवतार होगा हिर्वा माता की कोख में पदार्पण किया और गर्भ पूर्ण होने पर उसका जन्म हुआ राजा पुलसीव राजमाता हिरवा के यहां रूपोलंग पहांदी पारी कुपार लिंगों का जन्म हुआ कुपार लिंगों के जन्म के बारे में अलग-अलग किंवदंती हैं। 

कपार माथा सिर आदि मानलें

तो सिर से पैदा हुआ मानते हैं। 

दूसरा यह है एक दिन राजमाता

बगिया में तोया फूल खाने की इच्छा हुई तो देखा एक भुजंग वृक्ष में कुंडली मारकर बैठा था और फल गिरा रहा था संकोच में थी पर तोता ने माता को बोला चिंता न करें सजोरपेन का आशीर्वाद समझ कर खाले तब हिरवा माता ने जी भर ऊमर फल खाया तदोपरान्त राजभवन चली गईं। 

तीसरा यह है एक दिन बगिया में एक सर्प बन फैलाए बैठा था और एक सुंदर शिशु वहां बैठा है थोड़ी देर बाद भुजंग वहां से चला गया तब माता ने नवजात शिशु को उठाकर राजभवन ले आईं और राजा पुलसीव को वृतांत बताया जैसी बड़ादेव की कृपा हो। राज कुमार रूपोलंग जिनका नाम कुपार लिंगो है वहीं हमारे गुरु हैं जिन्होंने कोयावंशी समाज और कोयली कछारगढ़ में बंद तैंतीस बच्चों को बन्द गुफा से मुक्त कराया और गोंडी रीति-नीति गोत्र व्यवस्था बनाकर सामाजिक व्यवस्था प्रदान किया। 



             गुरु पहांदी पारी कुपार लिंगों ना सेवा सेवा

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